'हाँ महाराज संकलप' सुन कर इन लोगों की आँखें खुलीं और तब गौड़बोले ने शास्त्रविधि से इनको स्नान करा, संकल्प कराया और इतने ही में फूलों की डालियाँ लिए हुए माली, दूध का बरतन लिए अहीर और भिखारियों ने आ आ कर भगवती में भीगे वस्त्रों से, खड़े खड़े ही इनको चारों ओर से घेर लिया। शरीर में राख रमाए, नौकाओं में भगवान् की मूर्तियों को चढ़ाए, भगवान् के नाम पर पुजापा माँगनेवाले दुनिया छोड़ने पर भी लोभ न छोड़ने वाले तीन चार साधु अपनी अपनी नावें लिए इनके चारों ओर आगए, और उनको ठहरा कर झालर घंटे और शंख घड़ियाल बजाने और चिल्ला चिल्ला कर माँगने लगे। "यहाँ की सब जाति मँगती! देश का दुर्भाग्य! हट्टे कट्टों को भी भीख माँगते हुए लज्जा नहीं आती!" कहते हुए ज्यों ही पंडितजी को मथुरा के विश्रांत घाट का अनुभव स्मरण हो आया उन्होंने तुरंत ही ललकार कर अपने साथवालों से कहा―"खबर- दार! एक पाई भी किसी को दी तो अभी ये लोग हम सब को यहीं डुबो कर मार डालेंगे।" यह सुनते ही इनके हाथ का हाथ में और टेंट का टेंट में रह गया। इस प्रकार की आवाज सुन कर पंडितजी के साथी देने से अवश्य रुक गए किंतु ऐसी बँदर घुड़की में आकर लेनदार यदि रुक जायँ तो कल ही उनके चूल्हे में पानी पड़ जाय। जो इन लोगों के पास खड़े थे वे और भी पास आ गए और]]
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