पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२३

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"क्यों फिर वही बात"!

"हाँ जी वही। जैसे इस माह तीन ओर हरियाली और सामने का मैदान सूखा पड़ा है और जलशून्य नदी और जन- शून्य पृथ्वी पर सूर्यनारायण के चहे जाने से अँधेरी रात अपनी अँधेरी चादर बिछा रही है वैसे ही मेरा हाल है। भगवान एक भी दे दे तो सब कुछ है, नहीं तो कुछ नहीं। यह सूर्य मेरे लिये जलता हुआ अंगारा, ये वृक्ष मेरे लिये करीर और यह मैदान मारवाड़ का रेगिस्तान!"

"सब परमेश्वर के हाथ है। वह चाहे तो राई से पर्वत कर दे"।

"परमेश्वर भी उद्योग से देता है"।

"उद्योग तो हम करते ही हैं"।

"नहीं नहीं! मजाक मत करो। आज मकान पर एक महात्मा आए थे"।

"अच्छा, इसका विचार घर चल कर करेंगे। रात्रि में बघेरे का डर है"।

बघेरे का नाम सुनते ही प्रियंवदा डर के मारे काँप कर प्रियानाथ से चिपट गई। पति उसे हाथ पकड़ कर घबराहट मिटाते हुए घर लाए।

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