पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२३३

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बहुत समझा बुझा कर कायल किया तब वह गुरुजी के चरणों में पड़ कर क्षमा माँगने लगा।

"हाँ! एक बात याद आ गई! इस प्रत्यक्ष गोदान ने एक पुरानी बात स्मरण करा दी। मैंने सुना है कि यहाँ पहले उभय- मुखी गोदान के नाम से बड़ा अनर्थ होता था। गैया को बच्चा जनते समय रोक कर दुष्ट लोग घंटों तक बच्चों को वैसे ही अधलटका लिए हुए गोदान कराते फिरते थे। कहते हैं कि यह दुष्टता बूँदी के महाराज रामसिंह जी कोई पचास बर्ष पहले बंद करवा गए।"

गौड़बोले के मुख से ये वाक्य निकलते ही पंडित, पंडिता- यिन, कांतानाथ और बूढ़े बुढ़िया का हृदय काँप उठा और वहाँ जो बूढ़े बूढ़े बैठे थे वे हाँ! हाँ!! कह कर महाराज को आशीर्वाद देने लगे। इतने ही में एक यात्री ने कहा―"साहब, अब भी हिंदुस्तान में बड़ा अनर्थ होता है। गाय बछड़ों के पाँच सात पैर, आँख में जीभ आदि विशेष अंग बतला बतला कर कितने ही लोग खूब पैसा लूटते हैं किंतु वास्तव में ये अंग बनावटी होते हैं। बचपन में उनके शरीर में सीं दिए जाते हैं और इस तरह वे बिचारे गूँगे प्राणी आजीवन दुःख पाते हैं। यहाँ वेणी तीर पर भी मौजूद हैं। आज ही मैंने देखे हैं। जिन्हें देखना हो मैं अभी दिखला सकता हूँ।"

उस यात्री के ऐसे मर्मभेदक शब्द सुन कर इन लोगों का हृदय दहल उठा और सब काम छोड़ कर उसे देखने