पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २२३ )

"हैं! तीन वर्ष! समझती नहीं! तीन वर्ष? पहेली न बूझ! साफ साफ कह। तीन वर्ष क्या?"

"तेरे बहनोई तीन वर्ष के लिये जेल खाने गए और तेरी ही बदौलत गए। तैने भूठमूठ कह दिया कि उन्होंने ही मुझे लूट लिया। और वह विचारे उस दिन इधर थे भी नहीं, दिल्ली गए थे। खूब दोस्ती निवाही! ले अब मैं जाती हूँ। तुझे उलहना देने ही आई थी।"

"मैं तेरे सिर की कसम खाकर―अपने प्यारे से प्यारे की सौगंद खाकर कहती हूँ, मैंने उनका नाम नहीं लिया। वह मुझे लूटने में मौजूद जरूर थे पर मैंने उनका नाम नहीं लिया।"

"जब तैने नाम नहीं लिया तब क्या कोई भूत कह गया?"

"भूत नहीं कह गया। पीछे से मुझे मालूम हुआ कि मेरे मुँह से उस बेहोशी की हालत में निकल गया और मेरे बाप में उसी समय मेरा बयान लिख कर भेज दिया। शायद (अपने पति की ओर इशारा करके) उनके पास भेजा हो उन्होंने पेश कर दिया होगा। उन्होंने फिर मुझ मरी को मारा! तुझे मारा सो मुझे ही मारा। तेरे और मेरे बीच में रंज कराने के लिये। पर मैं अपने ही सिर की कसम खाकर कहती हूँ। मैंने जान बूझ कर नहीं कहा। बेहोशी से मुझ से निकल गया। होश में होती तो अपना माथा कट जाने पर भी नहीं कहती। मैं क्या ऐसी वैसी हूँ जो