पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २२५ )

उसने प्रकाशित ऐसा ही कर दिखाया कि "इसमें कुसूर मेरे आदमी का ही है। उस दाढ़ीजार ने जैसा किया वैसा पा भी लिया। गया मुन्ना तीन वर्ष के लिये जेल काटने! छूट कर आवे तब निपूते का मुँह भी न देखूँ! तुझे और मुझे निगोड़े खसम भी अच्छे नहीं मिले! देखना तेरे बालम जी ने कैसा गजब किया है?"

"हैं हैं! क्या किया? सच सच कहिए। क्या किया? तुझे मेरे सिर की सौगंद है! क्या किया?"

"किया क्या, गजब किया। उधर तुझे घर से निकाल दिया और इधर मेरे उनको कैद कर तेरा सब माल मता पचा बैठे। तू इधर कौड़ी कौड़ी के लिये तरस तरस कर मरती है, दाने दाने के लिये बिलखती है और उधर वह मुआ यात्रा करता फिरता है। तेरे बिना यात्रा! ऐसी यात्रा करना झख मारना है। लुगाई इधर पड़ी पड़ी बिलबिलाती है और उधर वह पूत जी भाभी की गुलामी करते फिरत हैं। गुलामी न करें तो रोहियाँ कहाँ से मिलें।"

"हाँ बहन सच है! मेरा नसीब ही ऐसा है। वहाँ से निकाली जाने पर यहाँ, बाप के यहाँ, आई तो यहाँ भी मुझ पर बिजली पड़ी। मेरा बाप हम मा बेटी को रोती झकिती छोड़ कर न मालूम किधर चला गया। घर में जो कूछ धन दौलत थी उसे नौकर चाकर खा गए, अड़ोली पड़ोसी लूट ले गए। मेरी मा बिचारी भोली भाली है। दस से ज्यादह गिनना