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प्रकरण―२

पुत्रकामना।

"महात्मा कैसे थे? बूढ़े या जवान"?

उमर तो उनकी कोई पचीस वर्ष की मालूम होती थी परंतु बतलाई उन्होंने एक सौ तेरासी वर्ष की। वह जब मौज आती है तब चोला बदल लिया करते हैं"?

"हाँ तो जवान? ( हँस कर ) जवान ही महात्मा अच्छा। उससे अवश्य……"

"यह हर बार की दिल्लगी श्रच्छी नहीं। (तिउरियां बदल कर) चूल्हे में जाय उसकी जवानी। अब मैं कभी नाम भी न लूँगी। भगवान मेरा सुहाग अमर रक्खे। मुझे नहीं चाहिए बेटा बेटी। उस बिरियां मैं अकेली भी तो नहीं थी"।

"अरे नाराज हो गई! नाराज न हो प्यारी! जरा सी दिल्लगी में इतना कोप? अच्छा कहो कहो! उन्होंने क्या चम- स्कार बतलाया"?

"बस बस! रहने दो उनके चमत्कार! जब तुम्हें इतनी सी बात से ऐसा बहम हो गया तो मुझे भी ग़रज ही क्या है? बेटा होने से नाम भी तो तुम्हारा चलेगा"।

"नहीं नहीं! बहम बिलकुल नहीं! संदेह का लेश मात्र नहीं! भला तुझ जैसी सुशीला और बहम? परंतु बेटा