पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२४०

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है पर जिसने पाँच पंचों में हाथ पकड़ा था उसकी तो बानगी देख ली ना!"

"अरे बानगी? एक बार नहीं बीस बार देख ली। जिसने अपनी लुगाई को ही निकाल दिया उस नुए का अब नाम भी क्यों लेना। मैं तो कभी की तुझे समझाती हूँ। तू अब तक ही मान जाती तो इतना दुःख काहे को भोगती। तेरी उमर क्या तकलीफ पाने के लिये है। तेरा कुल मा मुखड़ा! हाय तेरी उठती हुई जवानी! देख देख कर मेरा कलेजा टुकड़े टुकड़े हो जाता है! प्यारी बहन! खा पी और मौज कर (उसकी ठोढ़ी पकड़ कर उसका मुँह उठाती हुई उससे आँख मिलाकर गालों को चूमती हुई "तेरे पर मुझे बहुत दया आती है। यों ही रंज ही रंज में कुत्ते की मौत न मर! प्यारी बहन अब भी मान जा! खा पी और मौज कर!"

"हाँ बहन जैसा उसने मेरे ऊपर जुल्म किया है उसे याद करके तो मेरे मन में यही आता है कि उसे दुनियाँ में मुँह दिखलाने लायक न्द रक्खूँ। पर करूँ क्या? दोनों कुल लाज जाँयगे। सब बाप दादों के ऊपर थूकेंगे। लोग कहेंगे कि फलाने की बहू, फलाने की बेटी, फलानी, फलाने………"

"हाँ हाँ! रुक क्यों गई? उसका भी नाम ले डाल। वह तेरे ऊपर मरा मिटता है। वह तुझे जी से चाहता है। जब तक तू जायेगी तुझे गले का हार बनाए रक्खेगा। जो तुझे जरा सा भी कभी दुःख हो तो मेरे मुँह पर थूँक देना! मैं