पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२४२

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अब इस बात का दोष अपने आदमी पर डालकर आप भली बन गई है। सुखदा को बहला फुँसला कर मथुरा ने अपनी मुट्ठी में कर लिया है और वही अब उसे किसी बदमाश के पास ले जाकर उसका काला मुँह करवाना चाहती है। इस दलाली में यदि मिल जाँय तो उस हरामजादी को सौ पचास रुपए मिल भी जाँय। यही "तिरियाचरित्र" है। कुछ भी हो, सुखदा का यदि भगवान ने सतीत्व बचा लिया तो अपने मुँह से आप कहेगी कि "भले घरों में पर पुरुषों का आना तो क्या, समझदार आदमी को चाहिए कि आनेवाली लुगाइयों पर भी खूब नजर रक्खे और ऐसी वैसी को घर की चौखट तक पर पैर न रखने दे, क्योंकि बुरे आदमियों से बुरी औरत हजार दर्जे बुरी हैं।" भगवान उसकी रक्षा करे।

अस्तु! इससे आगे इन दोनों सहेलियों की बात चीत एक दम बंद हो गई। बंद होने का कारण यही हुआ कि दोनों के संभाषण का खूब रंग जम रहा था। जब मथुरा अपनी सखी को ठिकाने लाने को ही थी, अब थोड़ी ही कसर बाकी रही थी उस समय अचानक सुखदा की मा ने इनके बीच में आकर "ऐं! क्या बात है?" पूछने से रंग में भंग कर दिया। उसकी सूरत देखते ही दोनों सकपका गईं। कहीं मा ने ये बातें सुन न ली हों इस डर से सुखदा के चेहरे का रंग उतर गया और मथुरा भी चुप चाप उठ कर तुरंत चंपत हुई। पति के चले जाने और घर का माल मता लुट