पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२४५

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होकर नहीं फटकने पाता था। जब से वह घर की मालिकिन बन कर इनके पास घर में आई उसने पति की नस नस में तेल डाल दिया। "बोवै पेड़ बबूर को आम कहाँ ते होय।" इस लोकोक्ति के अनुसार ही उसकी बेटी निकली। माता से भी बेटी बढ़ कर। माता लड़ने झगड़ने पर भी घर से बाहर नहीं निकलती थी। पति को सताने पर भी किसी पर प्रगट नहीं होने देती थी कि "अपने आदमी से मेरी लड़ाई है।" बेटी उससे दो कदम आगे बढ़ निकली। जब बेटे बेटी मा बाप के गुण दोषों की बानगी हैं तब प्रेमदा की प्रशंसा में पवे रंगने की आवश्यकता नहीं। इसीलिये बड़े लोग कह गए हैं कि- "माता जैसा पूत और काता जैसा सूत।" मेरी समझ में माता के गुण दोषों का असर पुत्र की अपेक्षा लड़की पर अधिक होता है और इसीका नमूना कर्कशा प्रेमदा की महा कर्कशा सुखदा है।

खैर! जो कुछ होना था सो हो चुका। पति के चले जाने बाद, अपने घर की सारी पूँजी पसारा लुट जाने के अनंतर अब लाड़ली बेटी ने बचनवाणों का प्रहार करके प्रेमदा का हृदय बेध डाला तब उसकी आँखें खुली। सचमुच ही कष्ट अंतःकरण का जुल्लाब है। जैसे कुटकी जैसी कड़ुवी दवा लेने में चाहे रोगी को हजार दुःख हो किंतु शरीर के सारे विकार निकल कर उसकी फूल सी देह निकल आती है उसी तरह दुःख पड़ने से आदमी को अकल आती है। बुरे से भी