पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२४६

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बुरे स्वभाव के आदमियों को, भ्रष्ट से भी भ्रष्ट मनुष्यों को, नीच से नीच नर नारियों को कष्ट पाने पर अपने किए के लिये पछताते हुए, गिरने के बाद सँभलते हुए देखा गया है। बुढ़ापे में आकर घोर नास्तिक से आस्तिक बन जाते हैं। शराब, जुआ, व्यभिचार, चोरी और इस तरह के दुनिया में जितने ऐब हैं वे कष्ट पाने पर छूट सकते हैं। विपत्ति पड़ने पर अनेकों ने इन्हें छोड़ दिया है। दुनिया के इतिहास में इसके एक दो, नहीं हजारों उदाहरण हैं। बस यही दशा प्रेमदा की हुई। सुखदा के विषय में पति के कहे हुए बचन मानों उसकी लाँखों के सामने खड़े होकर उसे ताना देने लगे। अवश्य ही वह अपने कुकर्मों पर अब बहुत पछताई किंतु "अब पछताए होत का जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।"

इस तरह परमेश्वर ने प्रेमदा को सुबुद्धि दी तो दी किंतु अभी सुखदा का मिजाज ठिकाने नहीं आया। माता से कल एक हलकी सी झपट हो जाने के बाद प्रेमदा को रोती देख कर सुखदा को चाहिए था कि वह माता से क्षमा माँग लेती किंतु माफी माँगने के बदले उसने उसे अधिक अधिक चिढ़ाया, उसने माता से बोल चाल बंद कर दी और एक घर में रहने पर भी दोनों अपने अपने मुँह फुलाए रहने लगीं। अवश्य उसका ऐसा बर्ताव देख कर माता यदि कुढ़ती है तो उसे कुढ़ने दीजिए। उसका दिन अपनी अड़ोसिन पड़ोंसिनों से हँसने बोलने में, अपनी हमजोलियों से ठट्ठे दिल्लगी करने में,