पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२५४

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हज़ार कसमें खाने पर भी उसकी बात का भरोसा न करके उक्षे निर्दोष न समझा और इसलिये एक व्यभिचारिणी स्त्री के लिये प्राचीनों के घर में रखकर जिस तरह का दंड देने की विधि बतलाई है उसी तरह का उसके साथ बर्ताव किया, किंतु उस दिन उसे पीटने पर पछताए भी वह कम नहीं। कई बार उन्होंने "चयार की देवी की जूतों से पूजा" कहकर संतोष भी किया किंतु मथुरा जैसी कुलटा कुटनी का स्पर्श करने और सुखदा को पीटने की ग्लानि बाहुत काल तक उसके हृदय में चक्कर लगाती रही।

अस्तु! वह इस अवसर में चुपके चुपके इस बात की अवश्य थाह लगाते रहे कि दुखदा का दोष किस दर्जे तक पहुँच गया है। निश्चय करके उन्होंने पूरी बातों का पता भी पा लिया किंतु भाई भौजाई की आज्ञा बिना उन्होंने जितना कर दिया उसके सिवाय और कुछ भी न करना चाहा। हाँ उन्होंने इतना कर दिया कि जिस दशा में वह रक्खी गई है उससे अधिक उसे कष्ट न होने पावे। आठ पहर में एक बार बिना लवण मोटा झोटा खाना, मोटा कपड़ा पहनना, चटाई पर सोना और किसी तरह का श्रृंगार करना-उसकी दिन चर्या। सोने खाने के सिवाय दिन रात राम राम जपना ही उसका काम। एक बार उसने इनके चरणों में सिर देकर कहा भी कि―

"मुझे अब बहुत सजा मिल चुकी। मेरा मन जरूर विगड़