पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२७

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"साधन कुछ विचित्र सा है। साधने योग्य नहीं। कहते थे कि योग साधन करने के लिये मैं प्रातःकाल ही प्राणायाम चढ़ाता हूँ और उसे छोड़ता हूँ रात के नौ बजे। उस समय मेरी कुटी पर तु आ जाये तो मैं आशीर्वाद दे सकता हूँ और एक मंत्र भी बतलाऊँगा। उसके जप करने से अवश्य संतान होगी। अथवा काशी जाकर हमारे गुरु के दर्शन करने से।"

"तब यह अवश्य भेड़ की खाल में भेड़िया है। उसने तुम्हें ठगने के लिये अच्छे अच्छे उपदेशों का जाल बिछाया है।"

"नहीं! वह लालची तो वहीं दिखलाई देता। मैं उसे एक रुपया देती थी परंतु दो मुट्ठी चनों के सिवाय उसने कुछ नहीं लिया। लोभी होता तो रुपया क्यों छोड़ता?"

"तू भोली है। हिंदू स्त्रियाँ बहुत भोली होती हैं। ऐसे ठगों के फरेब में आ जाती हैं। इतने लिखने पढ़ने पर भी तेरा भोला- पन्न नहीं गया। प्रथम तो उसने तुमसे बहुत रुपया पाने की आशा में दुकानदारी फैलाई है और जो सचमुच उसे रुपए पैसे का लोभ न हो तो वह तेरी लाज लूटना चाहता है।"

"नहीं! कदापि नहीं! हम औरतें आदमी की आँख पह- चान लेती हैं। यदि इनकी इच्छा ऐसी होती तो मुझे मालूम हो जाता।"

"भला तो आप इस विद्या में उस्ताद हैं! हम आप को आज से ही उस्ताद जी कहेंगे। अच्छा फरमाइए तो आपने यह किस से सीखी थी?"