पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/४३

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लेने के बाद शादी होती है और हम मानते हैं कि कम उमर में उनकी बुद्धि कच्ची होती है, और इस कारण बाहरी चाक- चिश्य देखकर वे एक दूसरे पर मोहित हो जाते हैं। इस मोह का, इस प्रणय का परिणाम तलाक है। बस इसीलिये हमारे शास्त्राकारों ने इसका भार माता पिता पर डाला है। वे मानते हैं कि खूब भूख लग जाने पर खाना देना चाहिए और हमारा सिद्धांत है कि यदि भूख लगने के समय खाना तैयार रहे तो उसकी नियत अखाद्य पदार्थों की ओर न दौड़ेगी। उनका प्रणय और हमारा परिणय है। उनके यहाँ प्रणय पहले और हमारे यहाँ प्रणय पीछे होता है। प्रियंवदा का विवाह ठीक हमारे सिद्धांत के अनुसार ग्यारहवें वर्ष में और इसके बाद उसका गौना पाँचवें वर्ष में हुआ था।

उसकी दादी सुंदरी की आज्ञा से उसकी शिक्षा का भार उसकी विधवा भुआ सुशीला पर डाला गया था। ये दोनों ही उसे शिक्षा देकर पहले सुकन्या फिर सुपत्नी और अनंतर सुमाता बनाना चाहती थी। इस कारण उन्हें इसको आज कल की स्कूली तालीम दिलाना पसंद न आया। सुशीला ने उसे घर पर पढ़ाने ही का प्रबंध किया। प्रियंवदा के पिता पंडित रिपुसूदन जी की स्थिति ऐसी नहीं थी कि जिससे वे कोई शिक्षिता नौकर रख सकें और जिस क्रम से उसकी शिक्षा का ठहराश हुआ था उसके अनुसार पढ़ानेवाली का मिलना भी कठिन था। इसलिये अपने भजन पूजन से अवकाश