पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/४४

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कम होने पर सुशीला ने इसे पढ़ाने का सारा भार अपने ऊपर लिया।

उपन्यासों के पढ़ने में जिन्हें केवल मनोरंजन ही से काम है वे महाशय यदि आपने भनों में ऊब उपजा लें तो मैं उनसे क्षमा माँगता हूँ क्योंकि जिन्हें "आदर्श दंपति" की सुंदरी और "सुशीला विधवा" की सी सुशीला पसंद है, जो अपनी गृहणी को, अपनी बहन बेटी को और अपनी बहुओं को इनकी सी बनाना चाहते हैं उनका इस लेख से कुछ काम अवश्य निकल सकता है। कम से कम उन्हें इतना अवश्य विदित हो जायगा कि स्त्री शिक्षा किस प्रकार की होनी चाहिए।

अस्तु सुशीला ने प्रियवंदा को पुस्तकें पढ़ाने में, घर के काम काज में, मनोरंजन में, माता पिता, पति संतान, सास ससुर और सगे संबंधियों के साथ उसके कर्तव्यों को समझाने के लिये जिल साँचे में ढाला था उसका दिग्दर्शन इस प्रकार से है। उसके साँचे का मुख्य सिद्धांत यही था कि आज कल की नवीन शिक्षा पाकर जिस तरह पति की बराबरी करने पर स्त्रियाँ उतारू हो जाती हैं, आजकल के नवीन समाज में जैसे अंगरेजी तालीम पाकर युवतियाँ पुरुषों का "वेटर हाफ"-( उत्तमार्द्ध) समझी जाने में अपना गौरव समझ बैठी हैं और आजकल जैसे स्त्रियों का दर्जा पुरुषों से भी ऊँच समझा जाता है, इस बास की गंध-नहीं-दुर्गंध प्रियंवदा के दिमाग में न घुसने पाई। जो लोग स्त्री को "बेटर हाफ" बनाकर उनका दर्जा आकाश