पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/४६

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"संतुष्टी भार्यया भर्त्ता भर्त्ता भार्या तथैवच,
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र चै ध्रु वम्।"

बस इसी सिद्धांत के अनुसार प्रियंवदा को शिक्षा दी गई। उसको लिखाया गया कि वह पति की दासी बन कर रहे, पति को अपना जीवनसर्वस्व समझे। पति चाहे काना हो, कुरूप हो, कलंकी हो, कोढ़ी हो, कुकर्मी हो, क्रोधी हो, स्त्री के लिये पति के सिवाय दूसरी गति नहीं। संसार में परमेश्वर के समान कोई नहीं किंतु स्त्री का पति ही परमेश्वर है। जिन स्त्रियों का यही अटल सिद्धांत है वे व्यभिचारिणी नहीं हो सकतीं और व्यभिचार से बढ़कर कोई पाप नहीं। इन विचारों को मूल मंत्र मानकर सुशीला ने प्रियंवदा के लिये साँचा तैयार किया। "हिंदू गृहस्थ" उपन्यास में जैसे पुरुषों की शिक्षा के लिये साँचा बनाया गया था और उसी के अनुसार प्रियंवदा के प्राणनाथ प्रियानाथ को शिक्षा दी गई थी उसी तरह इस साँचे में सुशीला ने प्रियंवदा को ढाला।

भोर के चार बजे सब घर वालों से पहले जागकर प्रातः स्मरण, फिर शरीरकृल्प से निपट कर स्वान, विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ और पति के दहने अँगूठे का पूजन। बस इसी पर नित्य नियम समाप्त। फिर घर का छोटा मोटा सा काम। यदि घर में शक्ति के अनुसार एक दो अथवा अधिक नौकर हों तो अच्छी बात है किंतु दिन रात पति की सेवा अपने ही हाथ से करना। रसोई बनाने में उसने प्रियंवदा को ऐसा होशियार