पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/४८

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उसी से काम नहीं चल सकता था इसलिये उसी मूल पर थोड़ा लौट फेर करने के अनंतर सुशीला ने अपनी भतीजी को स्त्रियों के इलाज की, गृहप्रबंध की, हिसाब की शिक्षा दी। उसने समझा दिया कि सास ससुर और जेठ जेठानी का दर्जा माता पिता के समान है, उनके साथ वैसा और देवर देवरानी के साथ भाई बहन का सा बर्ताव करना चाहिए। परंतु बाहर के तो क्या घर के भी किसी पुरुष के साथ हँसना बोलना एकांत में मिलना अथवा उनकी ओर आँख उठाकर देखना अच्छा नहीं। नोकर चाकर भी अपने पास स्त्रियाँ रहें और सो भी बुढ़िया नेक चलन, अच्छी तरह जाँच कर लेने बाद। बस यही उसका पर्दा था। वैसे यदि ससुराल में आज कल का सा कड़ा पर्दा हो तो उसका भंग करने के लिये सुशीला ने तिउरियाँ चढ़ाकर प्रियंवदा को मना कर दिया था किंतु वह नहीं चाहती थी कि कभी उसे बाहर की हवा भी न लगे। सुशीला की शिक्षा ने स्त्रियों के रोगों का इलाज करने में, बालकों के पालन पोषण में और उनके इलाज में तथा उनकी शिक्षा रक्षा में उसे खूब होशियार कर दिया था। परमेश्वर यदि उसे संतान दे तो वह हृष्ट, पुष्ट, बलिष्ट और सदाचारी आज्ञापालक हो-इस में संदेह नहीं।

हिसाब किताब से दुरुस्त रहकर जिस तरह घर का एक पैसा वृथा न जाने देने की उसे कसम थी उसी तरह मनुष्य