पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/५०

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भी रामनाथ पंडित ने अपने पुत्र को इससे ही ब्याहना पसंद किया था। प्रियंवदा बहुत सुंदरी नहीं थी। वह आँख नाक से अच्छी थी किंतु रंग गोरा नहीं था, गेंहुआ था। इस बात पर पंडित रामनाथ और उनकी स्त्री से बहस भी बहुत हुई थी। प्रेमदा गोरी न होना दोष मानकर इस संबंध से प्रसन्न नहीं थी और रामनाथ कहते थे कि―"गोरी न होना गुण है, दोष नहीं।"

अस्तु विवाह के बाद जब वह ससुराल आई तो पति ने अच्छी आच्छी पुस्तकें तलाश करके उसे देना, पुराणों में से इतिहासों में से, और और ग्रंथों में से अच्छे अच्छे प्रसंग निकाल कर उन पर पेंसिल से चिह्न लगाने और निज पत्नी का उन पर विशेष रूप से ध्यान दिलाने का भार अपने ऊपर लिया। वहाँ आने के बाद पति ने उसे थोड़ी संस्कृत और अंगरजी भी पढ़ाई। अंगरेजी केवल इतनी जिससे आवश्यकता पड़ जाय तो तार दूसरे से पढ़ाने के लिये किसी का मुँह ताकना न पड़े। इस तरह पति को गुरु बनाने में प्रियंवदा ने आना कानी भी की। उसने कहा―

"नहीं साहब! यह न होगा। गुरु बनाने के बाद पति पत्नी का संबंध रहना अयोग्य है। या तो गुरु ही बनिए अथवा………"

"अच्छा गुरु नहीं बनाना चाहती है तो ( एक हलकी सी चपत लगाकर मुसकराते हुए ) आप ही हमारे गुरु सही!"