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प्रकरण―५

भूत की लीला।

"जीते भी मेरी नस नस में तेल डाला और अब मर जाने पर भी मुझे कल से नहीं बैठने देती है। भगवान उनका स्वर्गवास करे। जब तक वह रहे कुछ इलाज भी होता रहा। अब इनसे कहती हूँ तो प्रथम तो इनके नाराज हो जाने का डर है क्योंकि यह बात ही ऐसी है। शायद यही ख्याल कर बैठें कि हमारे आदमियों को झूटमूठ बदनाम करतीं है। इनका ऐसा ख्याल कर लेना ही मेरे लिये मौत से बढ़कर सजा है और जो कहूँ भी तो यह इस बात को सच्चा नहीं मानेंगे। 'वाहियात! वाहियात!' कहकर उड़ा देंगे। हाय! कहाँ जाऊँ! और किस से कहूँ!! मेरा कलेजा खाये जाती है। निपूता कुछ हो भी तो कहाँ से हो?"

इतना कहकर वह रमणी दुपट्टा तान कर सोई भी परंतु जब कमरे में चारों ओर से चिनगारियाँ बरस कर चिराग गुल हो गया, अँधेरा होते ही जब "ऊँ! ॐ!! ॐ!!!" की आवाज इस युवती के कान के परदे फाड़ने लगी और जब कभी रोने और कभी खिलखिला कर हँसने की आवाज आने लगी तब इम बिचारी को नींद कहाँ! निंद निगोड़ी तो मानों आज आँखों से रूठ कर पकड़े जाने के डर से काले चोर की