पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/५६

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घबराओं नहीं, मैं आ गया।" कह कर इसने ढाढ़स दिलाया और तब अपने पास बैठे हुए अपनी सेवा करनेवाले को पह- चान कर―

"हैं हैं! यह क्या गजब करते हो? अजी मुझे नरक में न डालो। तुमसे और ऐसी सेवा? हे भगवान मौत दे दे।" कहती हुई यह इसके गले से लिपट गई। इसने छाती से लगा कर उसे ढाढ़स दिया, दवा देकर उसे आरोग्य किया, और पाँच सात दिन में जब उसमें उठने बैठने की शक्ति आ गई तब एक दिन उसे प्रसन्न देख कर उससे पूछा―

"मामला क्या था? कुछ कारण समझ में न आया!"

"कारण? कारण (आँखों में आँसू भर कर) मुझ से न पूछो। कारण बताते हुए मुझे संकोच होता है, डर लगता है। बस इसी लिये मैं वर्षों से छिपाती हूँ। आज तक मैंने कोई बात तुम से नहीं छिपाई परंतु कुछ ऐसा ही कारण है जिसमें मैंने बड़े बड़े संकद सह कर भी तुम्हारे आगे इसकी चर्चा न की।"

"मैं बेशक वर्षों से देखता हूँ कि तू सूखी जाती है। तेरे शरीर में कोई रोग न होने पर भी तू सूखती क्यों है? कारण बता? तुझे बताना पड़ेगा?"

"अजी कारण न पूछो? कारण बताने में मुझे संकोच होता है। मुझे डर होता है कि कहीं तुम नाराज न हो जाओ?"

"तू जानती है कि मैं अभी तक तुझ पर कभी क्रुद्ध नहीं