पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ४५ )

"घबड़ाओं नहीं। मरने न देंगे परंतु वह है कौन? क्या भूत है? या प्रेत है? अथवा पिशाच है? है कौन?"

"मैंने सब कुछ कह दिया। अब हाथ जोड़ती हूँ मुझ से नाम न कहलाओ। क्या कहूँ? अच्छा कहना ही पड़ेगा! मेरी माँ है।"

"नहीं! तेरी माँ नहीं, मेरी माँ। तेरी माँ तो अभी तक जीती जागती है। यह भूतनी बनकर तुझे कहाँ सताने आई। उस दिन छोटे भैया ने भी कुछ जिक्र किया था परंतु मैं इन बातों को मिथ्या मानता हूँ इसी लिये मैंने उसकी बात पर कान नहीं दिया। यदि तेरा कहना सत्य भी हो ( क्योंकि मैं तुझे झूठी नहीं मानता ) तो जीते जी उसने क्या दुःख दिया? मैंने कभी कुछ शिकायत नहीं सुनी?"

"बेशक! मैंने आप से कभी नहीं कहा। दुःख सुख सब नसीब के हैं फिर तुम्हें सताने से फायदा ही क्या? और जो जान भी लेते तो कर क्या सकते? थी तो तुम्हारी माँ ही और जो तुम्हारी माँ वही मेरी मा-मा से भी बढ़कर पूज्य, फिर उनकी बुराई यदि मेरी जवान से निकले तो जीभ जल जाय। अब की भी सिर पर आ बीती है तब झक मार कर आपके आग्रह करने से कहना पड़ा है क्योंकि दुःख पाकर मर जाना अच्छा। परंतु माता पिता की निंदा भगवान कभी न करावे।"

"अच्छा तो कह दे न? बात क्या थी?"