पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/६०

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कुछ स्वर पहचानने से आँखों में आँसू बहाते हुए भीतर आकर रोने लगे। "हाय माता! तेरी यह गति क्यों हुई? हे भगवान! तू जाने! मेरी गैया जैसी पवित्र माता की ऐसी गति!" कह कर उन्होंने ज्यों ही छाती में एक घुँसा मारने के लिये हाथ उठाया प्रियंवदा ने―"हैं हैं! यह क्या करते हो?" कह कर उनका हाथ पकड़ लिया। घटना इस दर्जे तक पहुँच जाने पर भी जब इस बात को उन्होंने सत्य न माना तब मैं भी इसे अभी सच्ची नहीं कह सकता हूँ। शायद आगे चल कर इसमें कुछ भेद ही निकल आवे अथवा न भी निकले किंतु यह उस समय की बात है जब प्रथम प्रकरण में लिखी हुई घटना बहुत पहले हो चुकी थी। इतना अवश्य कह देना चाहिए कि जो कुछ प्रियंवदा ने पति से कहा वह देवर कांतानाथ की राय लेकर। देवर भौजाई की इस विषय में एक राय थी।


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