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प्रकरण―६

कर्कशा सुखदा।

गत प्रकरणों से पाठकों ने जान लिया होगा कि पंडित प्रियानाथ के माता पिता का देहांत हो चुका था। उनकी स्त्री उनका छोटा भाई और उसकी बहू यही कुटुब था। संतान जैसे उनके नहीं होती थी वैसे उनके भाई के हो हो कर मर जाया करती थी। संतान के विषय में जो विचार प्रियंवदा के थे लगभग वे ही छोटे मैया और उसके स्त्री के भी! ये तीनों ही मिलकर इसका दोष माता पर मढ़ा करते थे। यदि माता का भूत हो जाना सत्य ही निकले और प्रियानाथ को चाहे इस घटना पर संदेह ही क्यों न हो परंतु ये तीनों इस बात को सच्चा समझते थे। इसलिये यदि पति के भय से प्रियंवदा इस अत्याचार को और लोकलाज से छोटे भैया इस कष्ट को चुप चाप सह लेते थे तो कांतानाथ की बहू जब जी में आता अपनी सास को अपने पति की माता को सैकड़ों गालियाँ सुनाया करती थी। यदि किसी दिन उसका पति उसे समझाता कुछ धमकाता अथवा चिरौरी करता तो झाडू लेकर उसके सामने हो जाने में भी वह कभी नहीं चूकती थी। उसका भकूला था―"जो वह राँड मेरे बेटे बेटियों को खाने से न चूके तो क्या मैं गाली देने से भी जाऊँ? मैं गाली