पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/६४

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अभ्यास करा दिया था वैसे ही सुखदा ने अपने मौके में रह कर खोटी निर्लज़ स्त्रियों की चटसाल में मानों गाली गाना सीखा था। सीखा क्या था बढ़िया से बढ़िया डिगरी प्राप्त की थी। वह केवल गाती ही नहीं थी बरन नई नई गालियाँ बनाया भी करती थी। इस बात के लिये जाति बिरादरी की औरतों में गली मोहल्ले की लुगाइयों में उसका बड़ा नाम था।

आज भी एक घटना हो गई। यदि यह बात न होती तो पंडित जी न जानते कि बहू इन गुणों में निपुण है, परीक्षा पास कर चुकी है। उनके सौभाग्य से, नहीं नहीं दुर्भाग्य से आज पंडित जी के प्रारब्ध ने ऐसा ही एक अवसर उनके सामने ला खड़ा किया जिससे बहू के दोनों गुणों की उन्हें बानगी मालूम हो जाय। घटना यों हुई कि सुखदा के पीहर से तार द्वारा ख़बर मिली कि उसके चचेरे भाई के लड़का हुआ है। ऐसा सुसंवाद पाकर यदि उसने नातेदारों को, अड़ोस पड़ोस वालों को और आने जाने वालों को न्योता दिया, लड़के के लिये बढ़िया से बढ़िया कपड़े और जेवर तैयार कराए तो कुछ अनुचित नहीं किया क्योंकि प्रथम तो ऐसा करना एक तरह दस्तूर सा समझ लेना चाहिए उसने इस काम के लिये पत्ति ले एक पैसा न माँगा जो कुछ इस तरह की, तैयारी में लगाया वह अपनी गिरह से अपने पिता के दिए हुए द्रव्य में से। इस कारण अधिक खर्च करना एकाध बार फिजूल बत-