पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/६६

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उसके मुँह से ऐसा वाक्य निकलते ही सब की सब स्त्रियाँ गालियाँ गाने के बदले गालियाँ देती हुई प्रियंवदा पर नाना प्रकार के इलजाम लगाती हुई ढोलक को फोड़कर खड़ी हो गई। किस ने कहा―"राँड खुद बुरी है और हमें बेपर्द बताती है।" कोई बोली―"और बातों शर्म नहीं केवल लुगाइयों में बैठ कर गीत गाने में लाज?" कोई कहने लगी―"बड़ो बूढ़ों की चाल है। इसके कहने से हम कैसे छोड़ दें?" और किसी ने कहा―"अरी बहन, बड़ी दिलजली है, अपने पेट में कुछ नहीं और औरों का भी नहीं सुहाता।" तब एक ने कहा―"हाँ! हाँ! सच है। बिचारी सुखदा पहले ही अपने पेट के दुःख से मरी जाती है। अब इस को इसके भाई का होना भी नहीं सुहाया।" फिर दूसरी बोली― "हजार छाती कूटो जो भगवान ने लंबे हाथों दिया हैतो उसका बाल भी बाँका न होगा।"

इतनी देर तक सुखदा चुपचाप खड़ी खड़ी नुन रही थी। वह देखती थी कि देखें क्या होता है किंतु जाती वार उसे जोश दिलाने के लिये सबने एक स्वर से कहा―

"ले बहन हम जाती हैं। अब हमने तेरे यहाँ आने की सौगंध खाई। ऐसी क्या हम बजारू औरतें हैं जो तेरे यहाँ अपनी इज़्जत बिगड़वाने आवें। तुम लाजवंती हो तो अपने घर की! हम बेपर्द ही सही।" इतना कह कर ज्यों हीं वे चलने लगीं सुखदा ने―"नहीं नहीं! बहन मत जाओ। तुम