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प्रकरण―७

रेल की हड़ताल।

"मामला क्या है? आज इस छोटे से स्टेशन पर इतनी भीड़? कोई हजार बारह सौ आदमियों से कम न होंगे, स्टेशन पर एक दो-नहीं-पाँच-सात गाड़ियाँ खाली खड़ी हैं। गाड़ियों से मतलब केवल उस गाड़ी से नहीं जिसको लोग डब्या कहते हैं और अंगरेजी में कैरेज। गाड़ियाँ अर्थात् ट्रेनें। एक एक ट्रेन में बीस बीस गाड़ियाँ। न कोई टिकट देनेवाला मिलता है और न जिसके पास टिकिट है उन्हें गाड़ी पर सवार करनेवाला। स्टेशन का रंग ढंग देखने से मालूम होता है कि आज इनका कोई मर गया है। परंतु मर गया होता तो हँसी दिल्लगी क्यों करते? स्टेशन के बाबू, खलासी, नौकर चाकर आज या तो मुसाफिरों का ठट्ठा करते हैं अथवा आपस में घुसपुस घुसपुस बातें। "अजी बाबू जी, ए सर- कार, अजी अन्नदाता, हम भूख प्यास के मारे मरे जाते हैं। यह जेठ की दुपहरी और ऐसी जोर शोर को लू! कहीं सिर मारने के लिये छाया का नाम नहीं। दस बीस आदमी हैजे से भर जाँय तो कुछ अचरज नहीं। गाड़ी कब जायगी? हम मरे जाते हैं हे भगवान! हमारी सुनो।" भीड़ में से इस प्रकार की पुकार एक बार नहीं, अनेक बार मचती है, स्त्री