पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/७१

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बालक रोते चिल्लाते हैं―रो रो कर गगनभेदी चिल्लाहट से कलेजे के किंवाड़ फाड़े डालते हैं परंतु इनकी पुकार सुननेवाला नहीं।

सरकार ने मुसाफिरों के आराम के लिये स्टेशन पर जल के नल लगा दिये हैं परंतु उनमें एक बूँद पानी नहीं। स्टेशन से गाँव ढाई तीन कोस और मुसाफिरों के पास अनाप सनाप बोझा। आज कुली मजदूरों ने बोझा उठाने की कसम खा ली और गाड़ी मिलते ही अपने ही अपने काम के लिये रवाना होने की मृगतृष्णा। इसलिये गाँव को चले भी जाँय तो कैसे जाँय? स्टेशन पर एक कुआँ नहीं, छोटी सी कुइयाँ है। प्रथम तो स्टेशनों पर पानी पांड़े रहने से और फिर जल के नल लग जाने से मुसाफिरों ने अपने साथ डोर लोटा रखना ही छोड़ दिया। पंद्रह सेर की आज्ञा होने पर भी एक एक आदमी के पास मन सवा मन बोझा होगा परंतु लोटा डोर कसम खाने के लिये नहीं। यदि किसी के पास कर्म संयोग से निकल भी आया तो कुइयाँ से पानी खैंचकर लाना और महाभारत जीतना बराबर। भला जिनको छुआ छूत का विचार है, जो बाजपेयी बन कर किसी को अपना पानी छुआने में नाक भौं सिकोड़ते हैं उनकी तो आथ मौत ही समझो, परंतु जिन्हें इन बातों की पर्वाह नहीं है अथवा जिनके कान में मौत ने आकर कह दिया है कि या तो आज के लिये छुआ छूत छोड़ दो, नहीं तो कुत्ते की तरह मारे जाओगे, वे प्यास