पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/७२

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से व्याकुल होकर यदि साहस के साथ पानी भरने के लिये दौड़े जाते हैं तो क्या हुआ? कुएँ पर कम से कम डेढ़ सौ आद- मियों की भीड़ है। यदि चार चार छः छः आदमी आपस के मेल मिलाप से साथ साथ जल भरने का सिलसिला डाल लें तो थोड़ी देर में सब ही भर सकते हैं परंतु सब ही औरों से पहले भरना चाहते हैं, पहले भरने के लिये आपस में लड़ते हैं, मारते कूटते हैं और इसीलिये अभी तक सब रोते के रोते हैं। आपस की गाली गलौज, मार कूट, धक्का मुक्का और लात घूसों के साथ रोने चिल्लाने से और तो क्या-खासा जंग का मैदान दिखलाई देने लगा है। इस लड़ाई में यदि किसी का सिर फूट गया है तो कोई रोता जाता है और अपनी टाँग का खून पोंछता जाता है। कोई "हाय मरा रे! बेतरह मारा गया हूँ।" पुकार रहा है तो किसी के मूर्च्छा के मारे होश हवाश ठिकाने नहीं है।

जहाँ पानी के नाम पर आँसुओं की धाराएँ बह रही हैं वहाँ खाने का ठिकाना कहाँ! जब सरकार की कृपा से, सुप्रबंध से हर एक स्टेशन पर घटिया बढ़िया लय तरह का खाना मिल जाता है और जब समय के प्रवाह ने मुसाफिरों के मन से खान पान की छुआ छूत उठा दी है तब लोग यहाँ तक बहादुरी लूटने लगे है कि ट्रेन में आराम से खाने की दुहाई देकर घर से भूखे आते हैं। इस लिये समझ लेना चाहिए कि यदि किसी के पास थोड़ा बहुत खाना है भी तो