पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/७४

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पुकार मच रही है तो ऐसा किसका पत्थर सा कलेजा है जो ऐसे समय में भी न पसीजे। इन मुसाफिरों में से कोई माई का लाल भी निकला। भूख और प्यास से, धूप और लू से व्याकुल होने पर भी उसने यों कुत्ते की मौत मरने से, अपने देशियों के, मनुष्य जाति के प्राण बचाने के लिये मर मिटना अच्छा समझा। एक मुसाफिर के पास से तलवार लेकर उसने म्यान से निकाली और कुएँ के इर्द गिर्द जो भीड़ थी उसे काई की तरह चीरता हुआ वह कुएँ पर जा खड़ा हुआ। खड़े होकर उसने ललकारा―

"खबरदार! कोई आपस में लड़े तो! मैं एकही झटके से दो टुकड़े कर डालूँगा। छः छः आदमी पाओ और कुएँ से पानी भरकर चुपचाप चल दो। अगर किसी ने धक्का मुक्की की यदि किसी ने किसी को मारा पीटा अथवा जो किसी ने गाली गलौज की तो वह अपने को मरा ही समझ ले।"

बस इसके इस सरह ललकारते ही तुरंत रास्ता हो गया। चारों ओर से "शाबाश शाबाश!" और धन्यवाद धन्यवाद!" की पुकार मच गई। और इस तरह घंटे डेढ़ घंटे में सब मुसा- फिरों के पास पीने के लिये पानी पहुँच गया। जिन लोगों के पास लोटा डोर था उन्होंने अपने हाथों से भर लिया और जो कोरे थे उनके लिये इस व्यक्ति ने उन्हीं मुसाफिरों में से चार आदमी खड़े करके स्टेशन वालों के तथा मुसाफिरों के डोल लेकर दिए और इस तरह पानी पहुँचाया।