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प्रकरण―८

आलसी भोला।

पंडित प्रियानाथ जी राजपुताने में कहीं के रहनेवाले थे। कहाँ के, सो बतलाने की आवश्यकता नहीं और यदि पाठक महाशयों की बहुत सी इच्छा हुई तो आगे चल कर देख लिया जायगा। हाँ! इतना अवश्य है कि गत प्रकरण में लिखी हुई घटना के अनंतर वे अपनी प्यारी प्रियंवदा और प्रिय बंधु, कांतानाथ समेत सकुशल मथुरा पहुँच गए। इधर ये तीनों और उधर बूढ़ा भगवानदास, उसकी स्त्री और उसका बेटा, यों छः आदमियों की एक यात्रा पार्टी थी। पंडित जी के साथ एक कहार नौकर भी था। नाम उसका था भोला परंतु लोग कहा करते थे कि "इसका माम भोला किस मूर्ख ने रख दिया? यह भोला नहीं। जो इसे भोला कहे सो भोला। यह पक्का घाघ है, बड़ा मतलबी है और कामचोर भी आला दर्जे का है।" इसके और गुणों का परिचय तो समय शायद पाठकों को दे तो देही सकता है किंतु कामचोरी की बानगी गत प्रकरण से प्रकट हो गई। वानगी यहाँ कि जिस समय प्रायः सबही यात्री भूख, प्यास लू, गर्मी और धूप के मारे तड़प रहे थे, जब उसके मालिक मालकिन जी तोड़ परिश्रम कर रहे थे तब भोला चंडू के