पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/९

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पठिकाओं के सामने है तब इसमें क्या है सो बतलाने की आवश्यकता ही क्या है? हाँ। इतना मैं कह सकता हूँ कि जिस उद्देश्य से मैंने अब तक और उपन्यास लिखे हैं उसी से यह "आदर्श हिंदू" भी लिखा है। इसमें तीर्थयात्रा के व्याज से, एक ब्राह्मणकुटुंब में सनातनधर्म का दिग्दर्शन, हिंदूपन का नमूना, आज कल की त्रुटियाँ, राजभक्ति का स्वरूप, परमेश्वर की भक्ति का आदर्श और अपने विचारों की बानगी प्रकाशित करने का प्रयत्न किया गया है। यदि इस पुस्तक में मैं आदर्श हिंदू सा अच्छा ख़ाक़ा तैयार कर सका तो मेरा सौभाग्य और पाठकों की उदारता और यदि मैं फेल होगया तो यह प्रयत्न धरती में पड़े पड़े आकाशग्रहण करने के समान है ही। हाँ! मेरी नम्र प्रार्थना है कि जो महानुभाव मेरी पुस्तकों को पसंद करते हैं के इसे भी निज जन की जान अपनावें और जो हंसबुद्धि से समालोचना करनेवाले महाशय हैं वे इसकी त्रुटियाँ दिखलाकर मेरे लिये पथप्रदर्शक बनने का अनुग्रह करें।

श्रीमान् महाराव राजा सर रघुवीर सिंहजी साहब बहादुर जी. सी. आई. ई., जी. सी. वी. ओ., के. सी. एस. आई. बूँदीनरेश को मैं किन शब्दों में धन्यवाद दूँ? मैं असमर्थ हूँ। इस पुस्तक का आकिंचन लेखक उन महानुभाव का चिराश्रित है, उनकी मुझ पर वर्द्धमती कृपा है और उन्हीं की सेवा में संवत् १९६९ में मुझे उसके साथ श्री जगदीश