पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/९२

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सचमुच ही कछुआ जाँघ का मांस नोच कर ले गया। घाव में से खून बहकर यमुना जल लाल हो गया और साथ ही प्रियंवदा बेहोश। आँखों पर जल छिड़कने और एक यात्री के पास से लेकर पँखा झलने पर जब उसे होश आया तब पंडित जी ने कहा―

"देखा तैने यात्रा का मजा! जब श्रीगणेश में ही यह दशा है तब आगे चलकर भगवान बचावै। क्यों भर गया ना पेट ऐसी यात्रा से? बोल। अब क्या कहती है?

"जो कुछ हुआ हमारे कर्मों का फल है। इसमें बिचारी यात्रा का क्या दोष? यात्रा करेंगे और घोर संकट सहकर भी अव- श्य करेंगे।"

"शाबाश! (अपनी स्त्री से) शाबाश! ऐसा ही दृढ़ संकल्प चाहिए! मैं भी केवल टटोलता था! आच्छा! (बंदर चौबे से) अच्छा महाराज! बोलिए संकल्प! "कहकर फिर पंडित जी ने हाथ में जला उठाया। एक मिनट गया, दो गए, पाँच सात करते करते दस पंद्रह मिनट निकल गए परंतु चौबेजी चुप। अपने लट्ठ को यमुना जी में इधर उधर घुमाकर कछुआ अवश्य हाँकते जा रहे हैं। अवश्य ही इस काम में चौबेजी मग्न हो रहे हैं किंतु संकल्प के नाम पर चुप! खैर! बंदर महाराज इधर उधर से साहस बटोरा। हिम्मत आई। पढ़ना तो जाय भाड़ चूल्हे में परंतु संकल्प याद न होने पर चौबेजी को कुछ लज्ज़ा भी आई। शर्म