पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१०

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(३)

"हाँ महाराज ! ठीक है, परंतु यहाँ एक और भी अनर्थ होता है। भगवती भागीरथी के पुण्य सलिल में मछलियाँ मारी जाती हैं। ( दूर से लटकती हुई जाल दिखलाकर) यह देखो प्रत्यक्ष प्रमाण। अच्छा अच्छा! अभी मैं आपको जाल डालते हुए भी दिखालाए देता हूँ। चढ़ो बाँध पर और लो यह दूरबीन।

"हाँ! हाँ!! दिखालाई देने लगा। (बाँध पर खड़े होकर दूरबीन लगाने के अनंतर) खूब दिखलाई देता है। राम राम! अनर्थ हो गया! पुण्यसलिला गंगा में यह पाप! और प्रायगी हिंदू इसका कुछ प्रयत्न नहीं करते?"

"बिलकुल उदासीन हैं। मैंने कई लोगों से कहा, पंडों को खुब समझाया किंतु वहाँ के बहुत आदमी जब इसे खानेवाले हैं तब वे ऐसा उद्दोग क्यों करने लगे? महाराज, मैं नहीं कहता कि मछली पकड़ना बिलकुल ही बंद कर दिया जाय। ऐसी सलाह देने का न तो समय है और न कोई अधिकारी है। किंतु मेरा कथन यह है कि कम से कम प्रयाग, प्रयाग की हद में, तीर्थों की सीमा में तो यह काम बंद कर दिया जाय। किंतु जब कहा जाता है तब लोग इस बात को मंजूर ही नहीं करते कि मछलियाँ मारी जाती हैं। सुना है कि कुछ लोगों ने उद्योग करके यमुनाजी के हिंदू घाटों पर इसे बंद भी किया हैं।"

"परंतु क्यों साहब! क्या यहां के बहुत आदमी मछलियाँ खानेवाले हैं?"