पंचकोशो की यात्रा में देवदर्शनों का आनंद हुआ,
तीर्थस्थान का जो सुख हुआ वह "सर्वेपदा हस्तिपदे निमग्दाः
इस लोकोक्ति से भोलानाथ के दर्शन और गंगाजी के स्नान
इन दोनों बातों के अलौकिक आनंद में समा गया। काशी-
निवासियों को इस यात्रा में काशी की तंग गलियों से छुट-
कारा होकर मैदान की हवा खाने का थोड़े दिनों के लिये
मजा मिलता है, घर में चूल्हा फूँकते फूँकते उकताकर वहाँ
की रमणियाँ यात्रा में दाल बाटी उड़ाती हैं, और जो लोग
दिन रात घरों में बैठे रहते हैं उन्हें तो पाँच कोस पैदल चलने
से अवश्य ही आनंद मिलता है किंतु इस यात्रापार्टी के लिये
नगरवासियों का आनंद कुछ भी आनंद नहीं है इसलिये ऐसी
साधारण बात को आनंद वा अनुभव की लिस्ट में दर्ज करना
पंडितजी को पसंद नहीं और इसी कारण यह लेखक भी एक
तरह लाचार है। हां! बूढ़े भगवानदास के प्यारे और भोले
बेटे गोपीबल्लभ को इस यात्रा में एक बात नई मिल गई और
उस पद्ध को उसने कंठ भी कर लिया। अब जब उसे छेड़ा
जाता है तब ही वह तुरंत सुना देता है और जब उसे अवकाश
मिलता है तब कभी कुछ जोर से, कभी आधे बाहर और
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