पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(९८)


अद्भुद अमृत का पान करते हुए पड़े रहें। से भक्तों के लिये जन्म मृत्यु कोई चीज नहीं, सुख दुःख कोई पदार्थ नहीं। बल्कि सुख से दुःख अच्छा है। सुख उनके उद्देश्य का पालन करने में बाधा डालनेवाला है और दुःख भगवान् के चरणकमलों की ओर खैंच ले जाने का मुख्य साधन है। गौड़- बोले के शब्दों का यही निचोड़ है। किंतु प्रियंवदा, भगवान- दास और चमेली की तो बात न पूछो! उनके लोचनों में से इस समय प्रेमाश्रु की धाराएँ बह रही हैं। जैसे जन्म का दरिद्री एकदम कहीं का खजाना पाकर दोनों हाथों से, चार आठ सोलह अथवा हजार हाथ न हो जाने पर पछताता हुआ उसे लूटता हो उसी तरह उस स्वर्गीय सुख को ये लूट रहे हैं। चोर को ऐसी लूट के समय अवश्य ही पकड़े जाने का भय रहता है, इसके कारण वह चौकन्ना होकर बार बार इधर उधर देखता जाता है। किंतु इन्हें तो आनंद एकाग्र चित्त से निर्भय होकर लूटने में है, क्योंकि इस लुट में न तो यमराज का भय है और न किसी राजा या बादशाह का।

ऐसी दशा में पंडितजी जैसा कोमलहृदय, गौड़बोले जैसा सरलहृदय विह्वल न हो जाय, यह हो ही नहीं सकता। जब मिथिलाधिपलि राजा जनक जैसे वेदांताचार्य को कहना पड़ा था कि --

"कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक।
मुनिकुलतिलक कि नृपकुलपालक॥