पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/११३

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परंतु उस चिंता की, उस परिश्रम की और उस उद्दोग की भी तो कुछ सीमा होनी चाहिए। वह गौड़बोले को साथ लेकर काशी की गली गली छान चुके, वहाँ की पुलिस पसीना- झार परिश्रम करय पच हारी। इनामी नोटिस देने में भी कुछ उठा नहीं रखा गया।

उन्हें अपने इष्टदेव का पूरा विश्वास है कि वह निःसंदेह कृपा करेगा। वह बारंबार ऐसा ही कहा करते हैं। वह सहसा घबड़ानेवाले आदमी नहीं। वह अच्छी तरह जानते और मानते हैं कि जब शरीर ही अनित्य है तब स्त्री क्या? उन्हें निश्चय है कि नर-शरीर धारण करने पर भगवान मर्यादापुरुषोत्तम दशरथनंदन भी जब ऐसी ऐसी विपत्ति से नहीं बच सके तब बिचारे कीटानुकीट प्रियानाथ की बिसात ही कितनी! वह इसी सिद्धांत के मनुष्य हैं कि जो कुछ भला और बुरा होता है वह अपने कर्मों के फल से। वह समझते हैं कि उद्योग मनुष्य का कर्तव्य है और परिणाम परमेश्वर के अधीन है। इन्हीं बातों को सोचकर, वह चाहे अपने मन को ढाढ़स देने में कुछ कमी न रखते हों, साथ ही गौड़बोले जैसे विद्वान् और बूढ़े भगवानदास जैसा अनुभवी उन्हें उपदेश देने को मौजूद है किंतु सचमुच ही आज उनकी दशा में और एक पागल में कुछ भी अंतर नहीं है। वह खूब जोर देकर साहस बटोरते और अपनी अकल ठिकाने लाते हैं किंतु आज- कल धीरज का भी धीरज भाग गया है। जब उनका चित्त