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जानते थे कि यह कौन है और कहाँ जा रहा है परंतु वह मनुष्य
इन्हें देखकर कुछ ठिठका। उसने खड़े होकर -- "घबड़ाओ
नहीं। मैं तुम्हें प्रियंवदा से मिला दूँगा। यदि अभी मेरे
साथ चलो ना मैं अभी मिला सकता हूँ।" कहते हुए भर-
पूर ढाढ़स दिलाया और सो भी इस ढंग से कहा कि जिसे
सुनते ही उन्होंने समझ लिया। उन्हें भरोसा हो गया कि
"यह कोई स्वर्ग का देवता है जो नर-रूप धारण कर मुझे
इस विपत्ति सागर से छुड़ाने आया है, अथवा कोई परोपकारी
सज्जन है जिसका हृदय, मेरा करुण क्रंदन सुनकर, पसीज गया
है।" बस उस समय उन्हें वैसा ही आनंद हुआ जैसा कई
दिन के भूखे को बढ़िया से बढ़िया भोजन के लिये न्योता पाकर
होता है। वह ऐसी आशा ही आशा में मनमोदक वनांत
एक अपरिचित व्यक्ति के साथ हो लिए। साथ क्या हुए
उन्होंने अपनी जान, अपना माल और अपना शरीर एक अन-
जान आदमी के सिपुर्द कर दिया। उन्होंने यह न सोचा कि
"कहीं मैं किसी गुंडे के जाल में न फँस जाऊँ?" होता वही
है जो होनहार है। भावी को बदल देने की शक्ति मनुष्य में
नहीं, देवता में नहीं और परमात्मा के सिवाय किसी में नहीं।
सर्वशक्तिमान् परमेश्वर, जिसका भृकुटी-विलास भी काल तक
को खा सकता है, अवतार धारण करने के अनंतर जब केवल
नरलीला करने के लिये इस भावी का वशवर्ती होकर जैसे वह
नचाती है तैसे ही नाचने लगता है फिर बिचारे पंडितजी को