पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१२०

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का ऋणा चुका दिया। पंडितजी यदि उसे अब तक न पहचान सके हों तो जुदी बात है किंतु इतना लिखने ले पाठकों ने अवश्य समझ लिया होगा कि यह वही व्यक्ति है जो एक बार माधुवेष धारण किए उनके साथ भगवती भागीरथी में नाव पर दिखलाई दे चुका हैं। संभव है कि शायद फिर भी किसी न किसी रूप में पाठकों के सामने आ खड़ा हो।

अंधेरी गली के अँधेरे मकान की अँधेरी सीढ़ियाँ चढ़ाकर वह आदमी पंडितजी को चौथी मंजिल पर ले गया। अब ठीक मौका पाकर उसने उनको छुरे के दर्शन कराए और जब उन्होंने अपने को सव तरह पराए वश समझ लिया तब वह गुंडा पंडितजी के पास से माने के बटन, बॉदी की तगड़ी और जेब के रुपए पैसे छीनकर अधखुले मकान क किवाड़ों को धक्का देकर उन्हें भीतर डालाने तक अनंतर बाहर की जंजीर चढ़ाता हुआ फौरन ही नौ दो ग्यारह हुआ।

बाहर जो कुछ पंडितजी पर बीती सो बीती किंतु भीतर का दृश्य और भी भीषण था। वहाँ पहुचने पर उनकी जो दशा हुई उसे या तो उनका अंत:करण ही जानता होगा अथवा घटघटव्यापी परमात्मा। जो बात उन्होंने कभी अपनी आँखों नही देखी थी, जिसके लिये उन्हें कभी स्वप्न में भी ख्याल नहीं हुआ था वही उनके नेत्रों के सामने खड़ी होकर नाचने लगी। वह वहाँ का दृश्य देखकर एकदम हक्के बक्के रह गए। उसी समय घबड़ा उठे और "हाय! बड़ा गजब
आ ० हि०--८