पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१२७

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"बेशक तुम सच्चे हो। भ्रम होने तुमारी भूल नहीं परंतु जब तुम अपने घर पहुँचकर अपनी प्यारी को सही सलामल पा लोगे तब तुम्हारा संदेह अपने आप मिट जायगा।"

"जब तक मेरा संदेह न मिट ले, आप उसे मेरी प्यारी न बतलाइए। मैं अभी तक उसे कुलटा समझे हुए हूँ।"

"अच्छा तुम्हें संदेह हो तो मैं तुम्हें घर पहुँचाने की पूर्व ही उसे मिटा सकता हूँ! अच्छा। (उस रंडी की ओर देखकर) यहाँ आ री नसीरन! हरामजादी एक भले आदमी को धोखा देकर सताती है।"

"महाराज, जो कुछ मैंने किया जमके सिखाने से किया। वही इनकी घरवाली की सूरत शकल मुझसे मिलती हुई पाकर मुझे सजा गए और जाती बार मुझे बीस रुपए का नोट दे गए।"

"क्यों? इससे उनका क्या मतलब?"

"मतलब यही कि नगर इनको यकीन हो जाय कि इनकी औरत फायशा है तो यह उसका पीछा छोड़ दें! वही इनको यहाँ लाए हैं। शायद इनमे उनको कुछ रंज पहुँच चुका है।"

इसके अनंतर पंडित प्रियानाथ में कितने ही गुप्त और प्रकट चिह्नों से, उसकी बोलचाल से निश्चय कर लिया कि यह प्रियंवदा नहीं नसीरन रंडी है। तब उनके जी में जी आया। तब वह हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर, पैर छुकर महात्मा से कहने लगे --