पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१३०

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क्या उसकी मिली भगन थी जिससे उसने चूँ तक न की! किंतु नहीं! प्रियंवदा के विषय में ऐसी राय देनेवाले खाँड खाते हैं। एक सती का कुलटा कहकर कलंकित करना सूर्य या धूल फेकना है। ऐसे यदि उसने चुप्पी साध जाने के सिवाय कुछ भी नहीं किया तो उसका दोष नहीं। चार लठैतों की सूरत देखने ही वह भय के मारे थरथराने लगी थी और उनमें से एक ने उसकी नाक में बेहोशी मल दी थी और सो भी थोड़ी सी नहीं! इतनी भली थी कि इसे बाँधकर ले जाने के अनंतर रात भर चेत न हुआ।

दूसरे दिन प्रातःकाल जब उसकी मूर्छा नष्ट हुई, वह एक साफ सुधर पलंग पर लेटी हुई थी। आँखों पर गुलाब- जल छिड़ककर, शर्वत वेद मुश्क पिलाकर, पंखा झलकार उसे आराम देने के लिये चार दासियाँ खड़ी थीं। उसका गोरा गाल गुलाबी चेहरा, हिरन के बच्चे की सी उसकी आँखें, उसकी नागिन सी अलकें और उसकी भरी जवानी को निरखकर जिन साहब के मुँह में पानी भर आया था वह एक आराम कुर्सी पर बैठे हुए कभी प्रियंवदा का बढ़िया से बढ़िया शर्वत पिलाने के लिये दासी से ताकीद करते थे, कभी पंखा झलनेवालो को झिड़ककर आप ही उसके हवा करने लगते थे और कभी रात भर उपचार करने पर भी उसकी मूर्छा दूर न होती देखकर आपने नौकरों को और विशेष कर उन आदमियों को गालियाँ दे देकर कोसते थे जिन्होंने एक