पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१३२

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"जला जाता है तो (मुँह फेरकर) जा भाड़ में पड़! खबरदार मुझसे प्यारी कहा तो! मैं जिसकी एक बार प्यारी बन चुकी उसी की जन्म भर दासी रहूँगी! मुझे नहीं चाहिए तेरे मौज और मजे! तुझे झख मारना हो तो और किसी कुलटा को टटोल! मुझसे एक जन्म में तो क्या तीन जन्म में भी आशा छोड़ दे!"

"अरी बाबली! यों क्या बकती हैं? जरा समझकर बाद कर। आदमी तो आदमी तुझे अब ब्रह्मा भी नहीं छुड़ा सकता, तू मेरी कैद में हैं! उस विचारे तक तो तेरी हवा भी नहीं पहुँच सकती। सीधी अँगुलियों न निकलेगा तो फिर मुझे जोर दिखलाना पड़ेगा। तू जिसके लिये मरी मिटती है वही यमराज की दाढ़ में पहुँच चुका!"

"झूठ है (कुछ सोचकर) सरासर झूठ है! कभी ऐसा हो ही नहीं सकता! मुझे भगवान् का, अपने अहिवार का, अपनी (चूड़ियाँ निरखकर) चार चूड़ियों का भरोसा है कि उनका बाल भी बाँका नहीं होगा! और तेरी क्या मजाल जो मेरे हाथ भी लगा सके! जिसने जगज्जननी जानकी को राक्षसराज रावण के पंजे से बचाया, जो वस्त्र बनकर द्रौपादी की लाज बचानेवाला है और जिसने गरुड़ छोड़कर नंगे पैरों भागकर गजराज को उवारा वही गोविंद प्रत्येक सती का सतीत्व बचाने के लिये तैयार है।"