पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१४३

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आवश्यक काम छोड़कर, नौकरी बिगड़ने की रंचक पर्वाह न करके किसी के साथ हो लिए थे? याद करो! आपने उसके निकट रहकर उसका इलाज करवाया। इस बहिन ने उसके मरहम पट्टी की, उसे पथ्य करके खिलाया और उसके मल मूत्र को साफ किया। गाड़ी में उसे मूर्छित देखकर दूसरे मुसाफिर उसके पास से रुपया पैसा निकाल हो चुके थे। उसके पास जब एक फूटी कौड़ी भी आपने न पाई तब उसके इलाज में, उसके खान पान में और टिकट दिलाकर उसे यहाँ तक पहुँचा देने में आपही ने खर्च किया। बस यह वही व्यक्ति है जो नाव में आपका घूँसा खाकर आप पर बिगड़ खड़ा हुआ, आपकी सती, साध्वी, पतित्रता पत्नी पर जिसने मन बिगाड़ा। पहचान लो। अच्छी तरह याद कर लो!"

"हाँ महाराज याद आ गया। बेशक वही है। उस समय उसकी लंबी दाढ़ी से नहीं पहचाना था किंतु अब स्मरण हो आया। वही है। परंतु आप मनुष्य नहीं देवता हैं। आपको कैसे विदित हो गया कि यह वही व्यक्ति है?"

"विदित न हो जाय? मैं वेतनभोगी सरकारी गुप्तचर नहीं, डिटेकिव नहीं, किंतु ऐसे नरपिशाचों का आमालनामा मेरी डायरी में है। वह रहनेवाला काशी ही का है। मेरे पुराने पड़ोसी का लड़का है। लाखों रुपए की सम्पत्ति उसने ऐसे ही ऐसे कुकर्मों में उड़ा दी। अब जो कुछ उसके पास है अथवा इधर उधर से लूट खसोटकर लाता है उसे इस तरह के