पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१४४

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कामों में उड़ाया करता है। हाँ इतना हो नहीं! आपके देश में सन्यासी बनकर थोड़े से जेवर के लालच से वह एक भले आदमी के बालक को मार आया है। इसलिये उसकी गिरफ्तारी का वारंट है। वह एक बार प्रयागराज में गंगा के उस किनारे पकड़ा भी गया। परंतु सिपाहियों को धोखा देकर भाग आया। तब से यहीं है। शायद उससे आप लोगों की एक बार रेल में और फिर प्रयाग के स्टेशन पर भेट भी हो चुकी है।"

"परंतु पिताजी, आपको यह सारा हाल क्योंकर मालूम हुआ?"

"वह उसी नसीरन रंडी पर मरा मिटता है। जब शराब पीकर उसके साथ मजे में आ जाता है तब अपनी शेखी वधा- रते वधारते सब कुछ कह जाता है। मेरी उस पर कई वर्षों से नजर है इसलिये मैंने किसी तरह उस रंडी को अपने काबू में ले रखा है। बस इस कारण वह मेरे पास आकर सारा हाल कह जाती है। एक बात उसने आपकी गृहिणी के विषय में और भी कही थी किंतु वह, सत्य है। अथवा मिथ्या हो, लज्जाजनक है इसलिये मैं कहना नहीं चाहता।"

इतना सुनते ही प्रियंवदा पसीने में सराबोर हो गई। वह लाज के मारे मरने लगी। उसकी आँखों में से आंसू बहकर अँगिया भिगोने लगे और उस समय उसका शरीर ऐसा ठंढा पड़ गया कि काटो तो खून नहीं। इस भाव का प्रियानाथ ने समझा, दीनबंधु ने भी कुछ अटकल लगाई हो तो कुछ