पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१४५

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आश्चर्य नहीं कि और किसी ने कुछ भी न जाना कि मामला क्या है? पति ने पत्नी को आँखों ही आँखों में समझा दिया और प्रियानाथ दीनबंधु से कहने लगे --

"हाँ! मैं इस घटना को जानता हूँ! आपने भी इसका भेद पा ही लिया होगा। अभी कहने की आवश्यकता नहीं। मैं स्वयं का अवसर मिला तो आपका संदेह निवृत्त कर दूँगा। परंतु महाराज मुझे एक संदेह बड़ा भारी है। आप क्योंकर मेरे उद्धार को तैयार हुए? और कटी हुई अँगुली किसकी थी?"

"इसका यश इस बूढ़े बाबा का देना चाहिए। गंग- तट पर जिस समय मैं संध्या वंदन से निवृत्त हुआ इसी से आपका सारा हाल कहा। इससे पता पाकर मैं अपने कर्तव्य-पालन के लिये तैयार हुआ। रहा सहा भेद मैंने घुरहूआ बाबू की श्यामा नौकरानी से जाना। उसे ही फोड़कर मैंनें प्रियंवदा के पास खंजर और खान पान पहुँचाया। बस इससे आगे आप सब कुछ जान ही चुके हैं।"

इस पर पंडितजी ने भगवानदास को धन्यवाद दिया। पंडितायिन ने बुढ़िया के कान में कहकर उनका अहसान माना और तब प्रियानाथ ने फिर पूछा --

"और महाराज, मेरे सामने (जेब में से पोटली निकालते हुए) इसे फेंकनेवाला कौन था? और उन दोनों रमणियों को यह बात किस तरह मालूम हुई?" इतना कहते कहते