पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१५०

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दिन रात की जी तोड़ मेहनत का घोर तप अरने के बाद सब प्रकार के झगड़ों से बचकर केवल हाकिम के अनुग्रह से यदि महीने दो महीने का अवकाश मिला हो तो वह केवल थकावट मेटने में, सुस्ती ही में, बातों ही बातों में निकल जाता है। अवधि से एक दिन भी देरी हुई तो दाना पानी बंद। बस वहीं ताँगे की टट्टू की तरह कान पकड़कर जीत दिए जाते हैं। पंडित प्रियानाय साधानमा क्लर्क नहीं थे, ऊँचे उहदेदार थे। इन्हें साधारण कर्मचारियों की तरह अपनी नौकरी में चाहे बीस सेर दाना न दलना पड़े किंतु पाँच सेर मैदा अवश्य पीसना चाहिए। मैदा भी ऐसा वैसा नहीं। यदि आँख में डालो तो लटके नहीं। बारीक बारीक चलनी से छानने पर जितना ही कम चोकर निकले उतनी तारीफ। उधर काम की चक्की में पिसते पिसते यात्रा में आए और इधर ऐसे एसे कष्ट। कोई दुबला पतला आदमी हो तो घबड़ा उठे। परंतु कर्तव्यदक्ष प्रियानाथ ने अपनी यात्रा सांगोपांग संपूर्ण करने के लिये फिर छुट्टी ली।

अस्तु। इस तरह की बाते बढ़ाकर इस किस्से को तूल देने से कुछ प्रयोजन नहीं। लेखक लिखने का परिश्रम भी करे और काम पसंद न आने पर पाठकों की गालियाँ भी खाय। इससे फायदा क्या? अब पंडितजी के लिये काशी- निवास के दिनों में दो तीन काम शेष रह गए हैं। काशी में रहकर अपने साधारण नित्यकर्म के अतिरिक्त इन्होंने जो