पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१६

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और आधे में ब्राह्मणभोजन करा दीजिए। परंतु इतना याद रखिए, विलायती चीनी का कोई पदार्थ न हो। विलायती खाँड़ खाना तो क्या वह स्पर्श करने योग्य भी नहीं है। वह, राम राम! थू थू!! बहुत ही घृणित वस्तु से साफ की जाती है।

"हाँ यजमान! ऐसा ही होगा। जो देशी चीनी की मिठाई भ,भरोसे की दुकान पर न मिली तो कभी बनावाकर खिलाई जायगी। गुड़ की चीजें?"

"बेशक ठीक हैं, परंतु ब्राह्मण पात्र तलाश करना। पढ़े लिखे विद्वान्! और विद्वान् न मिलें ते संस्कृत के विद्यार्थी। क्यों समझ गए ना? अब पाप पुण्य तुम्हारे सिर है।"

"हाँ हाँ! मेरे सिर।" कहकर इधर गुरूजी छलाँग भरते अपने तख्त पर आ डटे और मल्लाहों ने उधर डाँड़ खेकर इनकी नाव चलाई। इस तरह जब ये लेग सब ही कामों से निश्चिंत हो गए तब इन्हें पेटपूजा की सूझ पड़ी। नाव में रखे हुए खाने के पदार्थ सँभाले तो उनमें विलायती चीनी का संदेह। बस आज्ञा दी गई कि तुरंत यमुनाजी में डाल दिए जायँ। बस मिठाई मिठाई सब डाल देने बाद इन्होने केवल केले, सेब, अमरूद, नारंगी पर गुजारा किया और भोला, भगवान, चमेली, गोपीबल्लभ ने खूब डटकर पूरी तरकारी उड़ाई। किंतु खाते खाते ही जब इनकी निगाह किनारे पर कोई आधी मील की लंबाई में सूखती हुई मछलियाँ पकड़ने की जाल पर पड़ी तो इनका मन, सब खाया पीया