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हजारो साधु संन्यास निवास करके वेदांत का अनुशीलन
करते हैं और गृहस्थ ब्राह्मणों के बालक संस्कृत का अध्ययन करते हैं।
काशी की बुरी हवा लग जाने में उनमें बिगड़ने-
वाले, बिगड़कर प्रजापीड़न करनेवाले यदि काम नहीं हैं तो
कर्तव्यदक्ष भी थोड़े नहीं। सच्च संन्यासी, सज्जन ब्रह्मचारी
भी कम नहीं। यहा रहकर सचमुच सच्चे संन्यस्त आश्रम
का पालन करते हुए जीवन्मुक्त हो जानेवाले साधु देखे जाते
है और ब्रह्मचर्य इन के व्रती होकर, अन्नसत्र भोजन से
अपनी क्षुधा तृप्त करने के सिवाय दिन रात अध्ययन-अध्यापन
में बितानेवाले विरागी ब्राह्मण-बालक भी।
काशी में हजार बुराइयाँ हो किंतु इस गुण ने अब भी,
इग गए बीते जमाने में भी संसार में काशी का मस्तक ऊँचा
कर रखा है। यदि साधु ब्राह्मणों का अटल स्वार्थत्याग
उनकी अप्रतिम धर्मभक्ति और असाधारण प्रतिभा काई देखना
चाहे ना उसके लिये संसार में काशी से बढ़कर कोई जगह
नहीं। देश के एक छोर से दूसरे छोर तक ब्राह्मणों को पानी
पी पीकर कोसनेवाले हजारों नई रोशनीवाले मिलेंगे। वे
यदि अपनी भ्रांति भेटना चाहें तो काशी में आकर देखें।
ब्राह्मण बालकों का नि:स्वार्थ संस्कृत-प्रेम उनकी आँखों के
सामने मूर्तिमान् आ खड़ा होगा। किसी अँगरेजी पाठशाला
में जाकर एक अबोध बालक से पूछिए कि "बच्चा तू अँगरेजी
पढ़कर क्या करेगा?" तो तुरंत उत्तर मिलेगा कि "हम