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किंतु मेरी समझ में यही प्राचीन गुरूकुल का नमूना है। यदि
देशहित से झूठा दम भरनेवाले लोग सचमुच संस्कृत के उप-
कार से देश का उपकार समझते हों तो वे इन विद्यार्थियों
की, विपत्तिसागर में डूबनेवाले ब्राह्मण बालकों की बाँह गह-
कर इनके अध्यापन को श्रृंखलाबद्ध करें, संस्कृत के साथ साथ
इन्हें अर्थकरी विद्या सिखाने की योजना करें। लंबे लंबे
स्कीम बनाने के सिवाय जब धर्म के ठेकेदार लोग गाढ़ निद्रा में
सो रहे हैं तब यदि कहा भी जाय तो किससे! इस प्रकार की
बातें करते करते पंडित प्रियानाथ और गौड़बोले पंडित दीन-
बंधु के सामने रो उठे। उन दोनों के रूदन में अपने आँसू
मिलाकर "वास्तव में तुम्हारा कथन यथार्थ है" कहते हुए
पंडित दीनबंधु बोले --
"आपने जो कुछ कहा वह विद्यार्थियों के विषय में कहा।
विद्यार्थियों की दशा का आपने अच्छा खाका खैंच दिखाया
परंतु यहाँ के विद्वानों पर भी तो जरा दृष्टि डालिए। हमारे
शास्त्रों में से ऐसा कोई विषय नहीं जिसके पारंगत यहाँ विद्य-
मान न हों। साहित्य के, न्याय के, ज्योतिष के, वेद के,
वेदांत के, वैद्दक के, दर्शनों के, मीमांसा के, सांख्य के और
सब ही शास्त्रों के उत्कृष्ट विद्वान्, एक से एक बढ़कर यहाँ
आप लोग देख
चुके, इतने बढ़कर कि उनकी जोड़ के दुनिया
के पर्दे पर नहीं। बड़े बड़े नामी युरोपियन उनसे शिक्षा लेने
आते हैं। आने में आश्चर्य भी नहीं। प्रोफेसर मैक्समूलर