पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१७३

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सबको बाँट दिए। उनमें से एक अनार उठाकर बहुत देर तक वे उसकी ओर देखते रहे और तब "अखंड सौभाग्यवती पुत्रवती भव" का आशीर्वाद देते हुए उन्होंने उसे प्रियंवदा की झोली में डाल दिया। ऐसे सब कुछ दे दिया किंतु अशर्फियाँ किसी को न दीं। उनके पास लँगोटी के सिवाय कपड़ा नहीं, कंबल नहीं, पुआल के सिवाय बिछौना नहीं और दोनों हाथों को मिलाकर जल पीने के लिये ग्लास वना लेने के अतिरिक्त कोई पात्र नहीं, तुंबी तक नहीं, कठौती तक नहीं, तब यदि उन मुहरों को रखते भी तो कहाँ रखते। खैर कुछ भी न हो किंतु उन्होंने वे किसी को दों नहीं, मुट्ठी को छोड़- कर वे उनके पास से डिगीं तक नहीं। यदि उन्होंने उनका यह अड्डा छुड़ाया भी तो कभी सिर पर, कभी बगल में और कभी कंधे पर रखा किंतु खैंच खाँचकर फिर वही मुट्ठी। यदि दहना हाथ पसीज उठा तो बायें में और बाये से फिर दहने में। कोई आधे घंटे तक इस तरह करक तब वह अशर्फियाँ गोपीबल्लभ को देते हुए से बोले --

"बाबा, इन्हें जाकर गंगाजी में डाल आ। उसी में हमारा खजाना है।"

सुनकर गोपीबल्लभ कुछ हिचकिचाया भी सही, कुछ शर्माया भी सही परंतु उनकी आज्ञा माथे चढ़ाकर डाल अवश्य आया। "आप जैसे महात्मा के अशर्फियाँ भेंट करने में इसका अपराध ही है। आप क्षमा करें।" यह कहकर प्रियानाथ हाथ जोड़ने