पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१७६

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सब कुछ है। सबके सब ओतप्रोत भरे हैं। जैसा अधि- कारी हो वैसी ही सामग्री यदि इकट्ठा एक ग्रंथ में देखनी हो तो भागवत देखो। उसमें पाँच वर्ष के बालक बीस वर्ष की युवती और साठ वर्ष के बूढ़े सबके लिये समान सामग्री है। दुनिया में चाहे भक्ति से हो, ज्ञान से हो बंधमोक्ष से छुटकारा पाने के लिये भागवत से बढ़कर कोई ग्रंथ नहीं।"

"अब एक ही महाशय के प्रश्न का मुझे उत्तर देना है। इनका प्रश्न बड़ा गहन है, कठिन है। यदि सरल है तो इतना सरल कि दो पंक्तियों में उत्तर आ जाय। और कठिन है तो इतना कि पोथे रँग डालने पर भी निवृत्ति नहीं।"

"बेशक महाराज (दीनबंधु हाथ जोड़कर बोले) ऐसा ही है। बड़े बड़े पंडितो की मैंने सिर मारते देखा है फिर मैं बिचारा किस गिनती में? परंतु आप जैसे महात्मा की सूत्र रूप दो पंक्तियाँ ही मेरे लिये बहुत हैं।"

"अच्छा बहुत हैं तो भगवान् श्रीकृष्णचंद्र ने गीता में धनु- र्धर अर्जुन को जो उपदेश दिया है उसका सार, राम राम! सार का क्या सार हो। वेदों का सार तो गीता ही है। अस्तु, मर्म यही है कि रागद्वेष छोड़कर अपने वर्णाश्रम धर्म के अनुकूल कर्म करना, उसके फल की आकांक्षा छोड़ देना और हम उसके कर्ता नहीं हमारे कान पकड़ करा लेनेवाला कोई और ही है, परमात्मा है। बस यही है। इसमें कर्तव्यपालन की शिक्षा है। भगवान् ने अर्जुन की कायरता जुड़ाकर उसे