पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१८१

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है? परमेश्वर सहायक है। उसने ही तुझे सुबुद्धि दी, उसने ही पंडितजी को प्रेरणा कर तेरी रक्षा कर दी।" कहकर उसे ढाढ़स दिला दिया। वह बोले --

"इन बातों को भूल जा। ऐसी ऐसी बातें याद रहने से, इनका बारबार स्मरण होने से गर्भ पर बुरा असर पड़ेगा, यहाँ तक कि बालक का रूप रंग ही धुरहू का सा हो सकता है। तब लोग नाहक तेरा नाम धरेंगे।"

"जाओ जी! ऐसा मत कहो। उस निपूते का मेरे सामने नाम मत लो! थू थू! वैसा बालक हो जाय? राम राम! मैं मर मिटूँ! परंतु क्या उसको याद करने ही से ऐसा हो सकता है? मेरी समझ में नहीं आता! क्योंकर हो सकता है?"

"हाँ हो सकता है! विद्वानों ने अनुभव करके देख लिया है। तुझे भी (हँसकर) तजुर्वा करना है तो कर देख। अवसर भी अच्छा है। फिर घुरहू के बेटे पनारू!......" बस इतना पति के मुख से निकलते ही -- "बस बस बहुत हो गया। क्षमा करो। आगे न कहो। नहीं तो मैं अपनी जान दे डालूँगी!" कहती हुई उनके गले लगकर रोने लगी। "अरी पगली रोती क्यों है? मैंने तो योंही हँसी में कह दिया था।" कहकर पंडितजी ने उसका समाधान किया। तब उसने फिर कहा --

"निगोड़ी ऐसी हँसी भी किस काम की? आपकी हँसी और मेरी मौत! तुम्हारी एक हँसी से तो मैं पहले ही मरी जाती हूँ! उसने तो मुझे पहले ही कहीं मुँह दिखलाने लायक